रिट के प्रकार एवं क्षेत्र-
अनुच्छेंद 32 के तहत उच्चतम न्यायालय एवं अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय रिट जारी कर सकते हैं ये हैं बंदी प्रत्यक्षीकरण ,परमादेश,प्रतिषेध,उत्प्रेषण,एवं अधिकार पृच्छा ,संसद किसी अन्य न्यायालय को भी रिट जारी करने का अधिकार दे सकती है पर अभी केवल उच्चतम एवं उच्च न्यायालय ही इसे जारी कर सकते हैं। ये रिट अंग्रेजी कानून से लिए गए हैं जहां इन्हे विशेषाधिकार कहा जाता था जो की राजा द्वारा जारी किया जाता था जिन्हे अब भी न्याय का झरना उपनाम से जाना जाता है।उचत्तम न्यायालय और उच्च न्यायालय के रिट जारी करने की शक्ति में कुछ भिन्नता है जो इस प्रकार है -;उच्चतम न्यायालय केवल मूल अधिकार के क्रियान्वन को लेकर रिट जारी कर सकता है लेकिन उच्च न्यायालय किसी अन्य उद्देश्य को लेकर भी जारी कर सकता है,उच्चतम न्यायलय किसी एक ब्यक्ति या सरकार के विरुद्ध रिट जारी कर सकता है जानकी उच्च न्यायलय सम्बंधित राज्य या ब्यक्ति के लिए ,उच्चतम न्यायालय अपने रिट को नकार नहीं सकता जबकि उच्च न्यायालय नकार सकता है।
बंदी प्रत्यक्षीकरण -
इसे लैटिन भाषा से लिया गया है जिसका अर्थ है प्रस्तुत किया जाये यह उस ब्यक्ति के सम्बन्ध में न्यायालय द्वारा जारी आदेश है जिसे दुसरे द्वारा हिरासत में रखा गया है तब न्यायालय मामले की जांच करता है यदि हिरासत में लिए गए ब्यक्ति का मामला अवैध है तो उसे छोड़ा जा सकता है ,इस तरह यह किसी को जबरन हिरासत में रखने के विरुद्ध है।परमादेश -
इसका अर्थ है की हम आदेश देते हैं यह एक नियंत्रण है जो न्यायालय द्वारा सार्वजनिक अधिकारीयों को जारी किया जाता है ताकि उनसे उनके कार्यों और उसे नकारने के सम्बन्ध में पूछा जा सके इसे किसी सार्वजनिक इकाई ,निगम अधीनस्थ न्यायालयों ,या सरकार के खिलाफ सामान्य उद्देश्य के लिए जारी किया जा सकता है। पर यह निजी ब्यक्तियों एवं इकाई ,गये संवैधानिक विभाग,राष्ट्रपति,राजयपाल,और न्यायधीशों के विरुद्ध नहीं जारी किया जा सकता है।प्रतिषेध -इसका मतलब है रोकना इसे किसी उच्च न्यायालय द्वारा अधीनस्थ न्यायालयों या अधिकरणों को अपने न्यायिक क्षेत्र से उच्च कार्य करने से रोकना है पर यह परमादेश की तरह सीधे सक्रीय नहीं रहता है और यह सिर्फ न्यायिक प्राधिकरणों के विरुद्ध जारी किये जा सकते हैं।
उत्प्रेषण -इसका अर्थ प्रमाणित होना या सूचना देना है इसे उच्च न्यायालय द्वारा आधीनस्थ न्यायालयों और अधिकरणों को सीधे या पत्र जारी कर किया जाता है इसे अतिरिक्त न्यायिक क्षेत्र या न्यायिक कह-क्षेत्र की कमी या कानून में खराबी के आधार पर जारी किया जा सकता है।
अधिकार पृच्छा -इसका अर्थ किसी प्राधिकृत या वारंट के द्वारा है इसे न्यायालय द्वारा किसी ब्यक्ति द्वारा सार्वजनिक कार्यालय में दायर अपने दावे की जांच के लिए किया जाता है अतः यह किसी ब्यक्ति द्वारा लोक कार्यालय के अवैध अनाधिकार ग्रां करने से रोकता है।
अनुच्छेंद 33 -यहसंसद को अधिकार देता है की वह सशस्त्र बलों ,अर्धसैनिक बलों ,के मूल अधिकारों पर युक्तियुक्त प्रतिबन्धलगा सकता है जिसका उदेश्य उनके समुचित कार्य करने एवं उनके बीच अनुशासन बनाये रखना है इस अनुच्छेद के अंतर्गत विधि निर्माण का अधिकार सिर्फ संसद को है।
अनुच्छेद 34 -यह अनुछद मूल अधिकारों पर तब प्रतिबन्ध लगाता है जब भारत में कहीं भी मार्शल लॉ लागू हो जो संसद को इस बात की शक्ति देता है की किसी भी सरकारी कर्मचारी को या अन्य को उसके द्वारा किये जाने वाले कार्य की ब्यवस्था को बरकरार रखे या पुनर्निर्मित करे संसद किसी मार्शल लॉ वाले क्षेत्र में जारी दंड को वैधता प्रदान कर सकता है।
अनुच्छेद 35 -यह अनुछेद केवल संसद को कुछ विशेष मूल अधिकारों को प्रभावी बनाने के लिए कानून बनाने की सकती प्रदान करता है जोकि राज्य विधानमंडल को नहीं प्राप्त है यह ब्यवस्था सुनिश्चित करती है की भारत में मूल अधिकार एवं दंड व उनके प्रकार में एकता है।
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