नीति निर्देशक तत्व -इसका उल्लेख्य संविधान के भाग 4 के अनुच्छेद 36 से 51 तक है जिसे संविधान निर्माताओं द्वारा आयरलैंड के संविधान से लिया गया है जिसे आयरलैंड ने स्पेन के था संविधान के नीति निर्देशक तत्व संविधान की आत्मा हैं। ग्रेनविल ऑस्टिन द्वारा इसे संविधान की आत्मा कहा गया है इसकी कुछ प्रमुख विषेशताएं इस प्रकार हैं -;
(१ )निति निर्देशक तत्व से यह स्पस्ट होता है की नीतियों एवं कानूनों को प्रभावी बनाते समय राज्य इन तत्वों को ध्यान में रखेगा ये संवैधानिक निदेश या बिधायिका ,कार्यपालिका प्रशासनिक मामलों में राज्य के लिए सिफारिशें हैं।
(२ )-आधुनिक लोकतान्त्रिक राज्य में आर्थिक ,सामाजिक और राजनीती विषयों निदेशक तत्व महत्वपूर्ण हैं जिनका उद्देश्य न्याय उच्च आदर्श ,स्वतंत्रता,समानता,बनाये रखना है जैसा संविधान की प्रस्तावना में उल्लेख्य है जिसका उद्देश्य एक लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना है। आर्थिक और सामाजिक लोकतंत्र की स्थापना ही नीति निर्देशक तत्व का उद्देश्य है।
(3 )-निदेशक तत्व गैर न्यायोचित हैं मतलब इनके हनन होने पर इन्हें न्यायालय द्वारा लागू नहीं कराया जा सकता ,अतः सरकार इन्हें लागू करने के लिए बाध्य नहीं है।
निदेशक तत्वों का वर्गीकरण -इसे तीन भागों में बिभक्त किया गया है समाजवादी,गाँधीवादी,उदार बौद्धिक,
समाजवादी सिद्धांत -ये सिद्धांत समाजवाद के आलोक में हैं जिनका जिनका लक्ष्य सामाजिक और आर्थिक न्याय प्रदान करना है ,सामाजिक आर्थिक और राजनितिक द्वारा सामाजिक ब्यवस्था सुनिश्चित करना (अनुच्छेंद38 ) के तहत उल्लेख्य है ,सभी नागरिकों को जीविका के पर्याप्त साधन ,भौतिक संसाधनों का सामान वितरण,पुरुषों और महिलाओं को कार्य हेतु सामान वेतन ,बालकों के दुरपयोग से संरक्षण, (अनुच्छेंद 39 )
सामान्य न्याय एवं गरीबों को निशुल्क विधिक सहायता (अनुच्छेंद 39 क )लोक सहायता पाने के अधिकार को संरक्षित करना (ानुछेद 41 ), काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं का तथा प्रसूति सहायता का उपबंध करना (अनुच्छेद42),सभी कामगारों के लिए निर्वाह मजदूरी,सामान्य जीवन स्तर और सामाजिक तथा सांस्कृतिक अवसर(अनुच्छेद43),लोक स्वास्थ्य का सुधार करना(अनुच्छेद47),
गांधीवादी सिद्धांत- ये सिद्धधां गांधी की विचारधारा पर आधारित हैं जोकि राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान गाँधी द्वारा पुनर्स्थापित योजनाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं ,गांधी जी के सपनो को साकार करने हेतु उनके कुछ विचारों को निति निर्देशक तत्व में समय किया गया है जो इस प्रकार हैं-;
ग्राम पंचायतों का गठन कर और उन्हें आवश्यक शक्ति प्रदान करना (अनुच्छेद ४०),ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योगों को प्रोत्शाहन (अनुच्छेद 43 ),अनसूचित जाति एवं जनजाति और समाज के कमजोर वर्गों के शैक्षिक और आर्थिक हितों को प्रोत्साहन और सुरक्षा (अनुच्छेद46 ),स्वास्थ के लिए हानिकारक नशीली दवाओं ,मदिरा ,आदि का औषधीय प्रयोजन से अलग उपभोग पर प्रतिबन्ध (अनुच्छेद 47 ),दुधारू पशुओं के बली पर रोक और नश्लों में सुधार का प्रोत्साहन(अनुच्छेद 48 ),
उदार बौद्धिक सिद्धांत -इसमें उन सिद्धांतों को शामिल किया गया है जो उदारवादिता विचारधारा से सम्बंधित हैं जोकि इस प्रकार हैं -; नागरिकों के लिए एक सामान सिविल संहिता (अनुच्छेद 44 ),14 वर्ष की आयु तक निशुल्क शिक्षा (अनुच्छेद 45 ),कृषि और पशुपालन को आधुनिक प्रणालियों से करना (अनुच्छेद 48 ),पर्यावरण संरक्षण तथा संवर्धन और वन तथा वन्य जीवों की रक्षा ,राष्ट्रीय महत्त्व वाले स्मारकों या वास्तु का संरक्षण (अनुच्छेद 49 ),राज्य की लोकसेवा में कार्यालयका से पृथक करना (अनुच्छेद 50 ),
इस तरह हम कह सकते हैं की निति निर्देशक तत्व का बहुत महत्त्व है मूल अधिकार से किसी भी तरह कम नहीं है पर ये गैर न्यायोचित हैं।
(१ )निति निर्देशक तत्व से यह स्पस्ट होता है की नीतियों एवं कानूनों को प्रभावी बनाते समय राज्य इन तत्वों को ध्यान में रखेगा ये संवैधानिक निदेश या बिधायिका ,कार्यपालिका प्रशासनिक मामलों में राज्य के लिए सिफारिशें हैं।
(२ )-आधुनिक लोकतान्त्रिक राज्य में आर्थिक ,सामाजिक और राजनीती विषयों निदेशक तत्व महत्वपूर्ण हैं जिनका उद्देश्य न्याय उच्च आदर्श ,स्वतंत्रता,समानता,बनाये रखना है जैसा संविधान की प्रस्तावना में उल्लेख्य है जिसका उद्देश्य एक लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना है। आर्थिक और सामाजिक लोकतंत्र की स्थापना ही नीति निर्देशक तत्व का उद्देश्य है।
(3 )-निदेशक तत्व गैर न्यायोचित हैं मतलब इनके हनन होने पर इन्हें न्यायालय द्वारा लागू नहीं कराया जा सकता ,अतः सरकार इन्हें लागू करने के लिए बाध्य नहीं है।
निदेशक तत्वों का वर्गीकरण -इसे तीन भागों में बिभक्त किया गया है समाजवादी,गाँधीवादी,उदार बौद्धिक,
समाजवादी सिद्धांत -ये सिद्धांत समाजवाद के आलोक में हैं जिनका जिनका लक्ष्य सामाजिक और आर्थिक न्याय प्रदान करना है ,सामाजिक आर्थिक और राजनितिक द्वारा सामाजिक ब्यवस्था सुनिश्चित करना (अनुच्छेंद38 ) के तहत उल्लेख्य है ,सभी नागरिकों को जीविका के पर्याप्त साधन ,भौतिक संसाधनों का सामान वितरण,पुरुषों और महिलाओं को कार्य हेतु सामान वेतन ,बालकों के दुरपयोग से संरक्षण, (अनुच्छेंद 39 )
सामान्य न्याय एवं गरीबों को निशुल्क विधिक सहायता (अनुच्छेंद 39 क )लोक सहायता पाने के अधिकार को संरक्षित करना (ानुछेद 41 ), काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं का तथा प्रसूति सहायता का उपबंध करना (अनुच्छेद42),सभी कामगारों के लिए निर्वाह मजदूरी,सामान्य जीवन स्तर और सामाजिक तथा सांस्कृतिक अवसर(अनुच्छेद43),लोक स्वास्थ्य का सुधार करना(अनुच्छेद47),
गांधीवादी सिद्धांत- ये सिद्धधां गांधी की विचारधारा पर आधारित हैं जोकि राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान गाँधी द्वारा पुनर्स्थापित योजनाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं ,गांधी जी के सपनो को साकार करने हेतु उनके कुछ विचारों को निति निर्देशक तत्व में समय किया गया है जो इस प्रकार हैं-;
ग्राम पंचायतों का गठन कर और उन्हें आवश्यक शक्ति प्रदान करना (अनुच्छेद ४०),ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योगों को प्रोत्शाहन (अनुच्छेद 43 ),अनसूचित जाति एवं जनजाति और समाज के कमजोर वर्गों के शैक्षिक और आर्थिक हितों को प्रोत्साहन और सुरक्षा (अनुच्छेद46 ),स्वास्थ के लिए हानिकारक नशीली दवाओं ,मदिरा ,आदि का औषधीय प्रयोजन से अलग उपभोग पर प्रतिबन्ध (अनुच्छेद 47 ),दुधारू पशुओं के बली पर रोक और नश्लों में सुधार का प्रोत्साहन(अनुच्छेद 48 ),
उदार बौद्धिक सिद्धांत -इसमें उन सिद्धांतों को शामिल किया गया है जो उदारवादिता विचारधारा से सम्बंधित हैं जोकि इस प्रकार हैं -; नागरिकों के लिए एक सामान सिविल संहिता (अनुच्छेद 44 ),14 वर्ष की आयु तक निशुल्क शिक्षा (अनुच्छेद 45 ),कृषि और पशुपालन को आधुनिक प्रणालियों से करना (अनुच्छेद 48 ),पर्यावरण संरक्षण तथा संवर्धन और वन तथा वन्य जीवों की रक्षा ,राष्ट्रीय महत्त्व वाले स्मारकों या वास्तु का संरक्षण (अनुच्छेद 49 ),राज्य की लोकसेवा में कार्यालयका से पृथक करना (अनुच्छेद 50 ),
इस तरह हम कह सकते हैं की निति निर्देशक तत्व का बहुत महत्त्व है मूल अधिकार से किसी भी तरह कम नहीं है पर ये गैर न्यायोचित हैं।
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