अंतर्राज्यीय सबंध -भारतीय संघीय ब्यवस्था की सहायता मात्र केंद्र तथा राज्यों के सौहार्दपूर्ण के अन्तर्सम्बन्धों पर भी निर्भर करती है। संविधान ने अंतर्राजीय सौहार्द के सम्बन्ध में प्रावधान हैं।
अंतर्राज्यीय जल विवाद -संविधान के अनुच्छेद 262 अंतर्राज्यीय जल विवादों से सम्बंधित है जिसमे दो प्रावधान हैं -;संसद कानून बनाकर अंतर्राजीय नदियों तथा नदी घाटियों के प्रयोग बंटवारे तथा नियंत्रण से सम्बंधित किसी विवाद पर शिकायत का निपटारा कर शक्ति है ,संसद यह भी ब्यवस्था कर सकती है की ऐसे किसी विवाद में ना ही उच्चतम न्यायालय और ना ही कोई अन्य न्यायालय अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करे।
अंतर्राजीय जल विवाद अधिनियम केंद्र सरकार को नदी अथवा नदी घाटी के जल के सम्बन्ध में दो अथवा अधिक राज्यों के मध्य विवाद के निपटारे हेतु एक अस्थाई न्यायालय की गठन की शक्ति प्रदान करता है जिसका निर्णय अंतिम एवं विवाद से सम्बंधित सभी पछों के लिए मान्य होता है। यदि जल विवादों से विधिक या हित जुड़े हुए तो उच्चतम न्यायालय को यह अधिकार है की वह राज्यों के मध्य विवादों की स्थिती में उनसे जुड़े मामले की सुनवाई कर सकता है लेकिन इस सम्बन्ध में विश्व के बिभिन्न देशों में अनुभव किया गया है की विवादों में निजी हित सामने आने पर विवादों का निपटारा सही तरीके से नहीं हो पाता।
अंतर्राज्यीय परिषदें -अनुच्छेद 263 राज्यों के मध्य तथा केंद्र और केंद्र राज्य समन्वय हेतु अंतर्राज्यीय परिषद् के गठन की ब्यवस्था करता है ऐसे यदि राष्ट्रपति किसी समय्याह महसूस करे की ऐसी परिषद का गठन सार्वजनिक हित में है तो वह ऐसी परिषद् का गठन करता है और उनके कर्तव्यों का निर्धारण करता है जो इस प्रकार है जैसे -; राज्यों के मध्य विवादों की जांच सलाह देना ,केंद्र एवं राज्य के सामान्य हित के विषयों पर विचार विमर्श करना।
अंतर्राज्यीय ब्यपार तथा वाणिज्य -संविधान के भाग 13 के अनुच्छेद 301 से 307 में भारतीय क्षेत्र में ब्यापार वाणिज्य का वर्णन है ,अनुच्छेद 301 घोषणा करता है की सम्पूर्ण भारतीय क्षेत्र में ब्यापार वाणिज्य तथा समागम स्वतंत्र होगा जिसका उद्देश्य राज्यों के मध्य अवरोधों को हटाना तथा देश में ब्यापार के प्रवाह को बढ़ाना है पर संसद कुछ मामलों में इन पर प्रतिबन्ध लगा सकती है जैसे -; सार्वजनिक हित में पर एक राज्य के ऊपर दुसरे राज्य को वरीयता नहीं दे सकती शिवाय बस्तुओं की कमी के आधार पर ,किसी राज्य की विधायिका सार्वजनिक हित में उस राज्य अथवा उस राज्य के अंदर ब्यापार की स्वंत्रता पर प्रतिबन्ध लगा सकती है पार इस उद्देश्य हेतु विधेयक राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से ही विधानमंडल में पेश किया जा सकता है। किसी राज्य की विधायिका दूसरे राज्य से आयतित उन बस्तुओं पर कर लगा सकती है जो उस राज्य में उत्पादित होते हैं।
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