अनुच्छेद 14 -
इस अनुच्छेद में कहा गया है की राज्य भारत के राज्य क्षेत्र में किसी ब्यक्ति को किसी बिधि के समक्ष समता से या विधियों के सामान संरछण से वंचित नहीं करेगा ,फिर चाहे वह ब्यक्ति भारतीय नागरिक हो या विदेशी। कानून के समक्ष समानता का विचार ब्रिटिश मूल का है जबकि विधियों के समान संरक्षण अमेरिका के संविधान से लिया गया है। सरल शब्दों में कहे तो कानून के समक्ष सभी समान हैं चाहे वह अमीर हो या गरीब ,अधिकारी हो या सामान्य नागरिक।
उच्चतम न्यायालय ने ब्यवस्था दी की जहां सामान एवं असमान के बीच अलग अलग ब्योहार होता है वहाँ पर अनुच्छेद 14 लागू नहीं होता है।
विधि का शासन -
विधि के समक्ष समानता विधि का शासन के सिद्धांत का मूल तत्व है इसकी कुछ अवधारणाएं हैं -इच्छाधीन शक्तियों की अनुपस्थिति अर्थात किसी भी ब्यक्ति को विधि के उल्लंघन के शिवाय दंडित नहीं किया जा सकता,कानून के समक्ष समानता आवश्यक है कोई ब्यक्ति अमीर,गरीब,ऊँच ,नीच,अधिकारी,गैरअधिकारी कोई कानून के ऊपर नहीं है,संविधान ब्यक्तिगत अधिकारों का परिणाम है जैसा की न्यायालय द्वारा इसे परिभासित और लागू किया जाता है।समानता के अपवाद -
कानून के समक्ष समानता का नियम पूर्ण नहीं है तथा इसके लिए कई संवैधानिक निषेध हैं जो इस तरह हैं -अनुच्छेद 361 के तहत भारत के राष्ट्रपति एवं राज्यपाल को कुछ विशेष शक्तियां प्राप्त हैं।
राष्ट्रपति या राजयपाल अपने कार्यकाल के दौरान किये गए किसी कार्य या निर्णय के प्रति न्यायालय में जवाबदेह नहीं हैं। पदावधी के दौरान इनके खिलाफ किसी न्यायालय में दाण्डिक प्रक्रिया चालू नहीं की जा सकती और इनकी गिरफ़्तारी और कारावास के लिए प्रक्रिया प्रारम्भ नहीं की जा सकती ,इन पर कोई दीवानी मुकदमा नहीं चलाया जा सकता अगर चल्या जाता है तो उन्हें इसकी सूचना देने के दो महीने बाद ही ऐसा किया जा सकता है.
अनुच्छेद 15 -
इसमें यह ब्यवस्था दी गयी है की राजय किसी नागरिक के प्रति केवल धर्म,जाती,मूलवंश ,लिंग,या जन्मस्थान के आधार पर भेद भाव नहीं करेगा यहां पर केवल सब्द ध्यान देने योग्य है इन सब के अलावा अन्य आधार पर मतभेद किया जा सकता है। कोई नागरिक केवल धर्म,जाति ,मूलवंश,लिंग,जन्मस्थान,के आधार पर किसी सार्वजनिक स्थान जैसे दूकान,भोजनालय,या मनोरंजन के स्थान पर प्रवेश से वर्जित नहीं किया जायेगा पर इसके भी कुछ अपवाद हैं जो इस प्रकार हैं-
राज्य की अनुमति है की वह बच्चों और महिलाओं के लिए विशेष ब्यवस्था करे,जैसे स्थानीय निकाय में महिलाओं के लिए आरक्षण और बच्चों के लिए निःशुल्क शिक्षा, सामाजिक या शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग या अनुसूचित जाति या जनजाति के विकाश के लिए विशेष उपबंध किया जा सकता है।
अनुच्छेद 16 -
इसमें उल्लेख्य है की राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से सम्बंधित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समानता होगी धर्म,जाति ,लिंग जन्म के आधार पर राज्य के किसी रोजगार के लिए अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता पर इसके भी कुछ अपवाद हैं जो इस प्रकार हैं-
संसद किसी विशेष रोजगार के लिए निवेश की सरत आरोपित कर सकती है ,नियुक्तियों में आरक्षण की ब्यवस्था कर सकती है,कानून के तहत किसी संस्था या इसके कार्यकारी परिषद् के सदस्य या किसी की धार्मिक पर ब्यवस्था की जा सकती है
अनुच्छेद 17 -
इसके तहत अस्पृस्यता का अंत कर दिया गया है और अस्पृस्यता से उपजी किसी निर्योग्यता को लागू करना दंडनीय अपराध होगा ,जान अधिकार सुरक्षा अधिनियम 1955 के अंतर्गत छुआ छूट को दंडनीय अपराध घोषित किया गया है यह अधिनिया निमन्लिखित को अपराध मानता है-
किसी ब्यक्ति को सार्वजनिक स्थल पर पूजा करने से रोकना,परंपरागत धार्मिक आधार पर अस्पृस्यता को न्यायोचित ठहराना ,सार्वजनिक स्थल में प्रवेश से इंकार करना,किसी को सामान देने या बिक्री करने से मन करना अस्पृस्यता को आधार बनाकर।
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