लोकसभा अध्यक्ष -;
पहली बैठक के बाद उपस्थित लोकसभा सदस्यों के बीच से अध्यक्ष का चुनाव किया जाता है और इसकी तारीख राष्ट्रपति निर्धारित करता है आमतौर पर अध्यक्ष लोकसभा के जीवनकाल तक पद धारण करता है पर कुछ मामलों में पहले भी समाप्त हो सकता है।
(1 )यदि वह सदन का सदस्य नहीं रहता है (2)यदि वह उपाध्यक्ष को सम्बोधित कर पद त्याग करे।
(3)यदि लोकसभा के सभी सदस्य बहुमत से पारित संकल्प द्वारा उसे उसके पद से हटाएं लेकिन ऐसा संकल्प तब तक प्रस्तावित नहीं किया जायेगा जब तक की उस संकल्प को प्रस्तावित करने के से पूर्व 14 दिन का अग्रिम नोटिस दे दिया गया हो।
जब अध्यक्ष को हटाने का संकल्प विचाराधीन है तो अध्यक्ष पीठासीन नहीं होगा पर उसे लोकसभा में बोलने,और उसकी कार्यवाही में भाग लेने का अधिकार होगा इस स्थिति में वह मत भी दे सकता है पर मत बराबरी की स्थिति में नहीं।
लोकसभा बिघटित होने क बाद भी अध्यक्ष अपने पद पर बना रहता है वह नयी लोकसभा की बैठक तक पद धारण किये रहता है।
शक्ति एवं कार्य -
अध्यक्ष लोकसभा एवं उसके सदस्यों का मुख्या होता है एवं सदस्यों की शक्ति और विशेषाधिकार का अभिभावक होता है सदन का मुख्य प्रवक्ता होता है और संसदीय मामलों में उसका निर्णय अंतिम होता है।
सदन की कार्यवाही व संचालन के लिए वह नियम एवं विधि का निर्वहन करता है ,अध्यक्ष का कर्तव्य है की गणपूर्ति की आभाव में सदन को स्थगित कर दे गणपूर्ति सदन की संख्या का दसवां भाग होता है ,संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता करता है,सदन के नेता के आग्रह पर गुप्त बैठक बुला सकता है ,अध्यक्ष यह तय करता है की कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं और उसका निर्णय अंतिम होता है ,दसवीं अनसूचि के तहत दल बदल के आधार पर निर्हर्ता का निपटारा करता है ,लोकसभा के सभी संसदीय सिमित के सभापति की नियुक्ति करता है एवं उनके कार्य की निगरानी करता है और स्वयं कार्य मंत्रणा ,नियम,सामान्य प्रयोजन सिमित का अध्यक्ष होता है।
लोकसभा उपाध्यक्ष -;
लोकसभा के सदस्यों द्वारा चुना जाता है इसका चुनाव अध्यक्ष के चुने जाने के बाद होता है जिसके चुनाव की तारीख अध्यक्ष निर्धारित करता है उपाध्यक्ष भी सदन के जीवनकाल तक पद धारण करता है पर उससे पहले भी पद छोड़ सकता है उसी अनुसार जैसे लोकसभा अध्यक्ष सिर्फ परिवर्तन इना है की उपाध्यक्ष अपना त्यागपत्र अध्यक्ष को सौंपेगा।
कार्य एवं शक्तियां -अध्यक्ष का पद रिक्त होने पर उनके कार्यों को करता है सदन की बैठक में अध्यक्ष की अनुपस्थिति में अध्यक्ष के तौर पर काम करता है लेकिन यहां ध्यान देने वाली बात ये है की उपाध्यक्ष अध्यक्ष के आधीन ना होकर संसद के प्रति उत्तरदायी होता है।
उपाध्यक्ष के पास एक विशेषाधिकार होता है उसे जब कभी किसी संसदीय सिमित का सदस्य बनाया जाता है तो वह स्वाभाविक रूप से उसका सभापति बन जाता है। अध्यक्ष की मौजूदगी में उपाध्यक्ष को सदन के अन्य सदस्यों की तरह बोलने और कार्यवाही में भाग लेने एवं मत देने का अधिकार है।
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