राजयसभा का सभापति -
राजयसभा का पीठासीन अधिकारी सभापति कहलाता है जोकि देश का उपराष्ट्रपति होता है लेकिन जब रुपरस्ट्रपति राष्ट्रपति के रूप में काम करता है तब वह राजयसभा का सभापति नहीं रहता है और इसे तभी पद से हटाया जा सकता है जब उपराष्ट्रपति के पद से हटा दिया जाए राजयसभा में सभापति की शक्ति उसी प्रकार है जैसे लोकसभा अध्यक्ष पर लोकसभा के पास दो अन्य शक्तिया होती हैं जो सभापति के पास नहीं हैं।
(1)कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं यह तय करने की शक्ति सिर्फ लोकसभा अध्यक्ष को है
(2)संसद के संयुक्त बैठक की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष करता है।
अध्यक्ष की तरह सभपति अपने सदन का सदस्य नहीं होता है लेकिन अध्यक्ष के तरह सभापति भी पहली बार मत नहीं दे सकता पर मत बराबरी होने की स्थिति में निर्णायक मत दे सकता है।
लेकिन जब उपराष्ट्रपति को हटाने का संकल्प विचाराधीन हो उस स्थिति में वह राजयसभा का सभापति नहीं रहेगा लेकिन वह सदन में मौजूद रह सकता है बोल और सदन की कार्यवाही में भाग ले सकता है लेकिन मत नहीं दे सकता जबकि लोकसभा अध्यक्ष लोकसभा सदस्य के तौर पर मत दे सकता है पर सभापति राजयसभा का सदस्य नहीं होता है।
सभापति के वेतन भत्ते संसद निर्धारित करती है जोकि भारत के संचित निधि से देय है।
सभापति भारतीय संसदीय समूह के पदेन अध्यक्ष के तौर पर कार्य करता है।
राजयसभा का उपसभापति-
अपने सदस्यों के बीच से ही राजयसभा उपसभपति का चुनाव करती है लेकिन अगर किसी कारण से उपसभापति का पद रिक्त हो जाता है तो राजयसभा अपने सदस्यों में से किसी और को चुन लेती है उपसभापति का पद तीन परिस्थितयों में रिक्त होता है -;
(1)राजयसभा में सदस्य्ता समाप्त हो जाने पर।
(2)सभापति को अपना लिखित त्यागपत्र देकर।
(3)अगर राजयसभा में बहुमत द्वारा उसको हटाने का प्रस्ताव पास हो जाये लेकिन ऐसा प्रस्ताव 14 दिन का अग्रिम नोटिस देकर ही लाया जा सकता है।
सभापति का पद रिक्त होने पर उपसभापति सभापति के रूप में कार्य करता है और सारी शक्तियां उसके पास होती है।
उपसभापति सभापति के आधीन ना होकर राजयसभा के प्रति सीधे उत्तरदाई होता है सभापति की तरह उपसभपति भी पहले मत नहीं देता पर मत बराबरी की स्थिति में निर्णायक मत दे सकता है और हटाने का प्रस्ताव विचाराधीन होने पर सदन की कार्यवाही में बोल एवं भाग ले सकता है पर पीठासीन नहीं होता है और ना ही कोई निर्णायक मत दे सकता है।
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