न्यायिक समीक्षा-
न्यायिक समीक्षा की उत्पत्ति एवं विकाश अमेरिका में हुआ था जिसका प्रतिपादन अमेरिका में पहली बार मारबरी बनाम मैडिसन के जटिल मुद्दों पर हुआ था लेकिन भारत के मामले में भारतीय संविधान खुद न्यायपालिका को न्यायिक समीक्षा की शक्ति देता है। और न्यायिक समीक्षा की शक्ति उच्चतम एवं उच्च न्यायालय को प्राप्त है और उच्चतम न्यायालय ने घोषित कर रखा है की न्यायिक समीक्षा की शक्ति न्यायपालिका की शक्ति संविधान की मूल विशेस्ता है। इसलिए न्यायिक समीक्षा की शक्ति को संविधान संसोधन के भी द्वारा काम या समाप्त नहीं किया जा सकता है।
न्यायिक समीक्षा का मतलब-
न्यायिक समीक्षा विधि अधिनियमों तथा कार्यपालिका आदेशों की संवैधानिकता की जांच की न्यायपालिका की शक्ति है जिकी केंद्र एवं राज्य शरकारों पर लागू होती है अगर परिक्षण के बाद पाया जाता है की संविधान का उल्लंघन हो रहा है तो उन्हें अमान्य या असंवैधानिक घोषित किया जा सकता है जिसे सरकार लागू नहीं कर सकती है।
इसे तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है -;संविधान संसोधन की न्यायिक समीक्षा ,संसद द्वारा पारित नए कानूनों की समीक्षा ,संघ एवं राज्य के आधीन अधिकारीयों द्वारा प्रशासनिक कार्यवाही की न्यायिक समीक्षा।
महत्त्व-
संविधान की सर्वोच्चता के सिद्धांत को बनाये रखने के लिए ,संघीय संतुलन बनाये रखने के लिए एवं नागरिकों के मूलाधिकारों के रक्षा के लिए।
भारत में संविधान ही सर्वोच्च है और किसी कानून की वैधता के लिए उसका संविधान के प्रावधानों एवं अपेक्षाओं के अनुरूप होना जरूरी है और न्यायपालिका ही तय कर सकती ही की कोई कानून संवैधानिक है या नहीं
जब तक मौलिक अधिकार हैं और संविधान का हिस्सा हैं न्यायिक समीक्षा की शक्ति का उपयोग आवश्यक है की इन अधिकारों द्वारा जो गॉरन्टी प्रदान की गयी है उसक उल्लंघन ना किया जा सके।
संविधान सर्वोच्च क़ानून है देश का कोई कानून या सरकार की कोई शाखा इसके ऊपर नहीं है सरकार के सरे अंग चाहे विधायक हो या कार्यपालिका या फिर न्यायपालिका सभी संविधान से ही शक्ति पाते हैं और इनको अपने संवैधानिक अधिकार की सीमा में ही रह कर काम करना चाहिए कोई भी ब्यक्ति चाहे वह कितने भी ऊंचे पद पर हो संविधान से ऊपर नहीं है।
न्यायालय ांविधान का अंतिम ब्याख्याता है और इसी को यह निर्धारण करने की जिम्मेदारी दी गयी है की सरकार के प्रत्येक सखा को कितनी शक्ति प्राप्त है। अगर सरकार द्वारा बनाया गया कोई कानून संविधान की मूल विशेस्ता या संविधान के भाग तीन या संघ्य ढाँचे का उल्लंघन करता है तो उच्चतम न्यायालय उसकी समीक्षा कर सकती है फिर चाहे वह नवीं अनसूचि के अंतर्गत ही क्यों ना आता हो।
Amazing knowledge
जवाब देंहटाएंChest workouts for Beginners