राज्य मंत्रिपरिषद -
भारतीय संविधान केंद्र के समान राज्य में संसदीय ब्यवस्था का उपबंध करता है जिसमे राज्य की राजनीतिक एवं प्रशासनिक ब्यवस्था का वास्तविक कार्यकारी मंत्रिपरिषद का मुखिया यानि की मुख्यमंत्री होता है संविधान में इसके बारे में अनुच्छेद १६३ और १६४ में उल्लेख्य है जिसमे अनुच्छेद 163 में राज्य मंत्रिपरिषद की स्थिति के बारे में बताया गया है जबकि अनुच्छेद 164 में मंत्रियों के वेतन भत्ते उल्लेख्य किया गया है।
अनुच्छेद 163 में यह उल्लेख्य है की राज़्यपाल को उन बातों के लिए छोड़कर जिसमे वह स्वविवेक से निर्णय ले सकता है उसे सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी जिसका मुखिया मुख्यमंत्री होगा।
अगर सवाल उठता है की कोई विषय ऐसा है या नहीं जिसके सबंध में राज़्यपाल द्वारा अपेक्षित है की अपने विवेक के अनुसार कार्य करे तो उसके द्वारा लिया गया निर्णय अंतिम होगा।
अनुच्छेद 164 में उल्लेख्य किया गया है की मुख्यमंत्री की नियुक्ति राजयपाल करेगा एवं अन्य मंत्रियों की नियुक्ति मुख्यमंत्री के परामर्श से करेगा।
राज्यों में मुख्यमंत्री समेत मंत्रियों की संख्या विधानसभा के कुल सदस्य संख्या का 15% होगी पर मुख्यमंत्री समेत मंत्रियों की संख्या 12 से कम नहीं होगी ,मंत्री राजयपाल के प्रसादपर्यन्त पद धारण करेंगे और मंत्री सामूहिक रूप से विधानसभा के प्रति उत्तरदाई होंगे और इन्हे इनके पद की सपथ राज़्यपाल दिलाएगा।
कोई ब्यक्ति छह माह के लिए मंत्री बन सकता है अगर वह विधानसभा का सदस्य नहीं भी है पर उसे इन छः माह के अंदर विधानसभा की सदस्य्ता ग्रहण करनी होगी।
अनुच्छेद 166 - इसमें उल्लेख्य किया गया है की समस्त कार्य राज़्यपाल के नाम पर होंगे और अनुच्छेद 167 में मुख्यमंत्री के कुछ कर्तव्य निर्धारित किये गए हैं जैसे वह मंत्रियों द्वारा लिए गए निर्णयों की सूचना राज़्यपाल को दे ,यदि राज़्यपाल चाहे तो मंत्रिपरिषद के समक्ष किसी ऐसे मामले को विचारार्थ रखे जिस पर निर्णय तो कसी मंत्री द्वारा लिया जाना है लेकिन जिस पर मंत्रिपरिषद ने विचार नहीं किया है।
मंत्रिपरिषद का गठन -
राज्य मंत्रिपरिषद के आकार एवं मंत्री के पद को अलग से विवेचित नहीं किया गया है इसका निर्धारण मुख्यमंत्री समय एवं परिस्थित के अनुसार निर्धारित करता है इसमें भी केंद्र की तरह तीन वर्ग होते हैं कैबिनेट,राज्य,एवं उपमंत्री जिनमे पद एवं राजनीतिक महत्ता के हिसाब से विभेद होता है। कैबिनेट के तहत गृह,शिक्षा,वित्तमंत्री आदि आते हैं जोकि बैठकों में भाग लेकर निर्णय प्रभावित करते हैं और इनकी जिम्मेदारी राज्य के सम्पूर्ण मामलों में होती है इसके आलावा राज्य मंत्रिओं को स्वतंत्र प्रभार भी दिया जाता है या फिर कैबिनेट मंत्रियों की सहता करते हैं एवं उप मंत्रियों की नियुक्ति कैबिनेट एवं राजयमंत्रियों के सहयोग के लिए की जाती है।
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