आधीनस्थ न्यायालय -
राज्य की न्यायपालिका में एक उच्च न्यायालय एवं अधीनस्थ न्यायालय होते हैं जिन्हे अधीनस्थ न्यायालय कहने का मुख्य कारण इनका उच्च न्यायालय के आधीन होना है संविधान के भाग 6 के अनुच्छेद 223 से 237 तक इन न्यायालयों के सगठन एवं कार्यपालिका से स्वतंत्रता सुनिश्चित करने का वर्णन किया गया है
जिला न्ययाधीशों की नियुक्ति -
इनकी नियुक्ति राज़्यपाल के द्वारा उच्च न्यायालय के परामर्श की जाती है जिसे न्यायाधीश चुना जाना है वह केंद्र या राज्य सरकार में किसी सरकारी सेवा में कार्यरत ना हो ,7 वर्ष का अधिवक्ता के तौर पर अनुभव हो ,और उसके नियुक्ति की सिफारिश उच्च न्यायालय ने की हो। इनके नियुक्ति पदस्थापना,पदोन्नति आदि पर नियंत्रण उच्च न्यायालय का होता है।
जिला न्यायाधीश के अंतर्गत नगर दीवानी न्यायाधीश,अपर जिला न्यायाधीश,संयुक्त जिला न्यायाधीश, आदि आते हाँ।
संरचना एवं अधिकार क्षेत्र -
राज्य द्वारा अधीनस्थ न्यायिक सेवा की संगठनात्मक एवं संरचना का निर्धारण किया जाता है पर एक राज्य से दुसरे राज्य में इसकी प्रकित अलग हो सकती है उच्च न्यायालय से नीचे इनके तीन स्तर होते हैं जिसमे जिला का न्यायधीश ही जिले का सबसे बड़ा न्यायिक अधिकारी होता है जिसे सिविल एवं आपराधिक मामलों का अपीलीय क्षेत्रधिकार प्राप्त है और जिला न्यायधीश ही सत्र न्यायाधीश होता है जब यह दीवानी मामलों को देखता है तो जिला न्यायाधीश है और जब फौजदारी मामलों को देखता है तो उसे सत्र न्यायधीश कहा जाता है।
जिला न्यायधीश के पास न्यायिक एवं प्रशासनिक दोनों शक्तियां होती हैं इसके पास जिले के सभी न्यायालयों के निरिक्षण की शक्ति है इसके फैसलेके विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है ,जिला न्यायधीश को किसी अपराध के लिए उम्रकैद से लेकर मृत्यु दंड तक शक्ति होती है पर इसके द्वारा दिए गए मृत्यु दंड पर उच्च न्यायालय का अनुमोदन आवश्यक है।
जिला एवं सत्र न्यायाधीश के नीचे दीवानी मामले के लिए अधीनस्थ न्यायाधीश का न्यायालय तथा फौजदारी मामलों के लिए मुख्य न्यायिक दंड अधिकारी का न्यायालय होता है अधीनस्थ न्यायाधीश को दीवानी याचिका के सम्बन्ध में ब्यापक शक्तियां मिली हैं मुख्य न्यायिक दंड अधिकारी फौजदारी मामले की सुनवाई करता है तथा सात वर्ष के कारावास की सजा सकता है।
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